09 September 2005

माँ भारती के भाल की शृंगार है हिन्दी

माँ भारती के भाल की शृंगार है हिन्दी
हिन्दोस्तां के बाग की बहार है हिन्दी
***
घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिन्दी
***
तुलसी, कबीर, सूर औ रसखान के लिए
ब्रह्मा के कमण्डल से बही धार है हिन्दी
***
सिद्धान्तों की बात से न होएगा भला
अपनाएँगे न रोज के व्यवहार में हिन्दी
***
कश्ती फँसेगी जब कभी तूफानी भँवर में
उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिन्दी
***
माना कि रख दिया है संविधान में मगर
पन्नों के बीच आज तार-तार है हिन्दी
***
सुन कर के तेरी आह 'व्योम` थरथरा रहा
वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिन्दी
***
-डॉ॰ जगदीश व्योम
***

1 Comments:

At 1:59 am, Blogger Unknown said...

Sir i am one of ur student. I was looking for this poem from the last many year. Happy to find it in this blog. Thanks yadav sir

 

Post a Comment

<< Home